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बस कुछ खयालात
जब शीशा टूटता है
तो न केवल आवाज़ सुनाई पड़ती है
पर लोग उसे बहुत नज़ाकत से समेटते हैं
पर जब लोगों के दिल टूटते हैं
तब किसी को कानो तक खबर नही पड़ती
बस जिसका टूटता है दिल
वही उसको फिर से अपने ज़हन में बसा के रख लेता है
कीचड़ से उगता है कमल
सुनते तो आये हैं येह कहावत
मगर अफसोस हमारे इस सर ज़मीन पर
कीचड़ से कीचड़ ही निकलते हुए ह्मने देखा है
दूसरों का दर्द हम शायद समझ भी ले
तब भी उनका दर्द कम नही हो सकता
ठीक वैसी ही जैसे उनकी खुशी से
हम अपनी ज़िंदगी के दुख नही कम कर सकते
सुख हो या दुख
वो सिर्फ और सिर्फ हमको ही चुनती है
इसलिये इसे हम ही अपनाये
तो इसी में होगी हमारी बेहतरी
समय और ज़िंदगी
एक साज़ के ऐसे दो तार हैं
की ….
किसी के जाने से न तो ज़िंदगी रुकती है
और न ही किसी की घड़ी टूटने से समय की रफ़्तार
कभी किसी को मुक्कम्मल जहां नहीं मिलता
कभी ईंट के घरों के अंदर घरौंदा नहीं बसता
तो कहीं घरौंदा होने पर भी रेहने का कोई ठिकाना नहीं होता
कभी किसी को मुक्कम्मल जहां नहीं मिलता
जहां किसी बिस्तर पर लेटा इंसान रात भर करवटेलेता रेहता है
तो कहीं सड़क के बीचो बीच सोने वाला
नींद की पालकी पर सवार होकर
ख्वाबो की दुनिया की सैर कर रहा होता है
कभी किसी को मुक्कम्मल जहां नहीं मिलता
औलाद न होने का ग़म किसी को ज़िंदगी का रोना दिये जाता है
तो किसी के औलाद उन्हे जीते जी ज़िंदगी में नासूर बनके ज़िंदगी भर के लिये रुला देते हैं
सच ही तो फिर केहते हैं कि कभी किसी को मुक्कम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता
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